टूट न जाऊ पत्तो की तरह, सोच कर घबरा जाता हूँ
मुझको थामे है कोई अपना, युकर तुफानो से लड़ पाता हू
अच्छा नही लगता जमाने को खिलना मेरा,
बेबेक्त ये शाखा हिला देता है कोई|
फिर अपनी ओट देकर, सम्भाल लेता है बही|
कसम है मुझे उस पोधे की ,
जिसको सीचा है तुमने|
आशीष तुम्हारा पाकर ,
विशाल इतना बनूंगा|
जब जेलेगा ये जहाँ धूप से,
तो छाओं अपनी दूंगा|
तुझसे बस यही बनती है,
अपने से न कभी जुदा करना|
उस लायक बनने तक,
ममता की छाओं अपनी देना|.....
केशेबराज ( कपिल राजपूत )